आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया, कुछ ऐसा ही हो गया है पृथ्वी और हमारा संबंध
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साल दर साल उपभोग की यह रफ्तार बढ़ती ही जा रही है। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले कुछ वर्षो में हमें अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए दो पृथ्वियों की दरकार होगी।
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