साल 1974 में जून-अगस्त के बीच दो बैठकें हुईं पहली दिल्ली में और दूसरी कोलंबो में। एक दोस्त ने दूसरी से तोहफा मांगा और उसने बेझिझक मां के शरीर से टुकड़ा काटकर उसे दे दिया। कच्छथीवू अब श्रीलंका का था शेष सब इतिहास है। न कोई जनमत संग्रह हुआ था न संसद में प्रस्ताव बस एक तानाशाही फैसला दो हस्ताक्षर और कच्छथीवू द्वीप पर लहराने लगा श्रीलंका का झंडा।
from Jagran Hindi News - news:national https://ift.tt/GKwAk48
from Jagran Hindi News - news:national https://ift.tt/GKwAk48
Comments
Post a Comment