घुमंतू जनजातियों को छह दशक पहले अपराधी होने की छाप से आधिकारिक तौर पर छुटकारा जरूर मिल गया, लेकिन उनके प्रति सामाजिक नजरिए में बदलाव अब भी नहीं दिखता।
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